एनसीआरबी ने बनाया नए कानून की जानकारी के लिए ऐप, गूगल और एप्पल प्ले स्टोर से भी कर सकते हैं डाउनलोड
जनता को किया जा रहा पुलिस सहित जिला प्रशासन द्वारा जागरूक, जानिए नए कानून के बारे में
बालोद। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के द्वारा संकलन ऑफ ए न्यू क्राइम लॉस के नाम से एक ऐप जारी किया गया है. जिसमें नए कानून के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है. जनता को जागरूक करने के लिए इस ऐप को बनाया गया है.गृह मंत्रालय के निर्देश पर पुलिस प्रशासन सहित जिला प्रशासन सभी वर्ग के लोगों को नए कानूनों के प्रति जागरूक कर रही है. एनसीआरबी मोबाइल ऐप में आपराधिक कानूनों का संकलन’ है जो गूगल और एप्पल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। यह ऐप सभी के लिए उपयोगी है और नए आपराधिक कानूनों पर एक व्यापक मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करता है। यह नए कानूनों के सभी अध्यायों और धाराओं को जोड़ने वाला एक सूचकांक प्रदान करता है और त्वरित सूचना पुनर्प्राप्ति के लिए खोज और लिंकिंग सुविधा के साथ पुराने और नए कानूनों के बीच धारावार तुलना के लिए एक संबंधित चार्ट प्रदान करता है। इस ऐप को ऑफलाइन मोड में काम करने के लिए बनाया गया है।
भारतीय चिंतन पर आधारित न्याय प्रणालीगृह मंत्रालय की माने तो नए कानूनों का उद्देश्य भारतीय कानूनी प्रणाली में सुधार करना और भारतीय सोच पर आधारित न्याय प्रणाली स्थापित करना है।ये कानून ‘लोगों को औपनिवेशिक मानसिकता और उसके प्रतीकों से मुक्त करेंगे’ और हमारे मन को भी उपनिवेशवाद से मुक्त करेंगे। ‘दंड के बजाय न्याय पर ध्यान केन्द्रित है। ‘सबके साथ समान व्यवहार मुख्य विषय है। यह कानून भारतीय न्याय संहिता की वास्तविक भावना को प्रकट करते हैं। इन्हें भारतीय संविधान की मूल भावना के साथ बनाया गया है। यह कानून व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। यह मानव अधिकारों के मूल्यों के अनुरूप है। यह पीड़ित केन्द्रित न्याय सुनिश्चित करेंगे। इन कानूनों की आत्मा न्याय, समानता और निष्पक्षता है।
ये हैं नागरिक केंद्रित कानून
भारतीय लोकाचार को अपने मूल में रखने वाले नए आपराधिक कानून अधिक नागरिक केन्द्रित बनाने की दिशा में बदलाव के प्रतीक हैं।
बीएनएसएस की धारा 173 (1) में नागरिकों को मौखिक अथवा इलेक्ट्रॉनिक संचार (ई-एफआईआर), बिना उस क्षेत्र पर विचार किए जहां अपराध किया गया है, एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है। धारा 173 (2) (1) के तहत नागरिक बिना किसी देरी के पुलिस द्वारा अपनी एफआईआर की एक निःशुल्क प्रति प्राप्त करने के हकदार हैं। धारा 193 (3) (ii) के तहत पुलिस को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में पीड़ित को सूचित करना अनिवार्य है। धारा 184 (1) के अनुसार पीड़िता की मेडिकल जांच उसकी सहमति से और अपराध की सूचना मिलने के 24 घंटे के भीतर की जाएगी। धारा 184 (6) के तहत मेडिकल रिपोर्ट चिकित्सक द्वारा 7 दिनों के भीतर भेजी जाएगी। धारा 18 (8) के तहत नागरिकों को अभियोजन पक्ष की सहायता के लिए अपना स्वयं का कानूनी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और सुलभ बनाया गया है। धारा 230 बीएनएसएस में नागरिकों को दस्तावेज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। धारा 396, इसमें पीड़ित नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा उपचार और मुआवजे का अधिकार है। धारा 398 के अंतर्गत गवाह संरक्षण योजना का प्रावधान है। धारा 360 में अभियोजन से हटने के लिए सहमति देने से पहले न्यायालयों को पीड़ित की बात सुनने का अधिकार दिया गया है। यह आपराधिक न्याय के लिए ‘न्याय केन्द्रित दृष्टिकोण’ का सबसे अच्छा उदाहरण है।
धारा 404 के तहत पीड़ितों को न्यायालय में आवेदन करने पर निर्णय की निःशुल्क प्रति प्राप्त करने का अधिकार मिला है। धारा 530 बीएनएसएस कानूनी जांच, पूछताछ और मुकदमे की कार्यवाही को इलेक्ट्रॉनिक रूप से आयोजित करने का प्रावधान है।
नए आपराधिक कानून पर एक नजर : भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में हुए मुख्य परिवर्तन
आईपीसी में धाराओं की संख्या 511 से घटाकर बीएनएस में 358 कर दी गई. 20 नये अपराध जोड़े गए. कई अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है. 6 छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है. कई अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है. कई अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है
ये हैं कुछ विशेषताएं
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को एक अध्याय में समेकित किया गया है. धारा 69: झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया है. धारा 70(2): सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में मुख्य परिवर्तन
सीआरपीसी में धाराओं की संख्या 484 से बढ़ाकर बीएनएसएस में 531 की गई. 177 धाराओं को प्रतिस्थापित किया गया. 9 नई धारा जोड़ी गई.14 धाराएं निरस्त की गई.
ये हैं कुछ विशेषताएं
जांच में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा. मजिस्ट्रेट द्वारा जुर्माना में वृद्धि की गई है. एफआईआर प्रक्रियाओं और पीड़ितों की सुरक्षा को सुव्यवस्थित करना.
धारा 173: जीरो FIR और e-FIR का प्रावधान किया गया है. धारा 176 (1) (ख): यह कानून ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पीड़ित को बयान रिकॉर्डिंग का अधिकार देता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) में मुख्य परिवर्तन
धाराओं की संख्या 167 से बढ़ाकर बीएसए में 170 की गई. 24 धाराएं बदली गई. 2 नई धाराएं जोड़ी गई.6 धाराएं निरस्त की गईं.
ये हैं कुछ विशेषताएं
इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है. डिजिटल साक्ष्य प्रामाणिकता के लिए रूपरेखा प्रदान करता है. धारा 2 (1) (घ) दस्तावेजों की विस्तारित परिभाषा. धारा 61: डिजिटल रिकॉर्ड की स्वीकार्यता में समानता दी गई है. धारा 62 और 63: इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता दी गई है.
महिलाएं और बच्चों के लिए क्या है नए कानून में
नए आपराधिक कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से निपटने के लिए 37 धाराएं शामिल हैं।महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को पीड़ित और अपराधी दोनों के संदर्भ में लिंग तटस्थ बनाया गया है। (धारा 2 बीएनएसएस)
18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। (धारा 70 बीएनएस)
झूठे वादे या छद्म पहचान के आधार पर यौन शोषण करना अब आपराधिक कृत्य माना जाएगा। (धारा 69 बीएनएस)
चिकित्सकों को बलात्कार से पीड़ित महिला की मेडिकल रिपोर्ट सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी को भेजने का आदेश दिया गया है। (धारा 51 (3) बीएनएसएस)
न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी का समावेश
आपराधिक न्याय प्रणाली के सभी चरणों का व्यापक डिजिटलीकरण किया गया। इसमें ई-रिकॉर्ड, जीरो-FIR, e-FIR, समन, नोटिस, दस्तावेज प्रस्तुत करना और ट्रायल शामिल हैं। (धारा 173 बीएनएसएस)
पीड़ितों के इलेक्ट्रॉनिक बयान के लिए ई-बयान तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाहों, अभियुक्तों, विशेषज्ञों और पीड़ितों की उपस्थिति के लिए e-Appearance की शुरुआत की गई। (धारा 530 बीएनएसएस)
‘दस्तावेजों’ की परिभाषा में सर्वर लॉग, स्थान संबंधी साक्ष्य और डिजिटल वॉयस संदेश शामिल होंगे। साक्ष्य का कानून अब इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अदालतों में भौतिक साक्ष्य के बराबर मानता है। (धारा 2 (1) (d) बीएसए)
कानून के तहत द्वितीयक साक्ष्य का दायरा व्यापक हो गया है जिसमें मौखिक स्वीकारोक्ति, लिखित स्वीकारोक्ति और दस्तावेज की जांच करने वाले कुशल व्यक्ति का साक्ष्य शामिल है। (धारा 58 बीएसए)
तलाशी और जब्ती की वीडियोग्राफी के लिए प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें जब्त वस्तुओं की सूची और गवाहों के हस्ताक्षर तैयार करना शामिल है। (धारा 105 बीएनएसएस)
यह है पीड़ित केन्द्रित दृष्टिकोण
यह पीड़ित को आपराधिक कार्यवाही में एक हितधारक के रूप में मान्यता देता है तथा उसे मुकदमा वापस लेने से पूर्व सुने जाने का अधिकार प्रदान करता है। (धारा 360 बीएनएसएस)
पीड़ित को FIR की एक प्रति प्राप्त करने तथा उसे 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार है। (धारा 193 (3) (ii) बीएनएसएस)
गवाहों को धमकियों और भय से बचाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, गवाह संरक्षण योजना की शुरुआत की गई। (धारा 398 बीएनएसएस) बलात्कार पीड़िता का बयान केवल महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा और उसकी अनुपस्थिति में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा। (धारा 183 (6) (ए) बीएनएसएस)
अपराध एवं दंड को पुनर्परिभाषित किया गया
छीना झपटी एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध है। (धारा 304 बीएनएस)
‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषाः इसमें ऐसे कृत्य शामिल हैं जो भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं या किसी समूह में आतंक फैलाते हैं। (धारा 113 बीएनएस)
राजद्रोह’ में परिवर्तनः राजद्रोह’ के अपराध को समाप्त कर दिया गया है तथा भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करने के लिए ‘देशद्रोह’ शब्द का प्रयोग किया है। (धारा 152 बीएनएस)
‘मॉब लिंचिंग’ को एक ऐसे अपराध के रूप में शामिल किया गया जिसके लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड है। (धारा 103 (2) बीएनएस)
संगठित अपराध को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। (धारा 111 बीएनएस)
समय पर और शीघ्र न्याय मिलेगा
समयावधि के लिए बीएनएसएस में 45 धाराओं को जोड़ा गया है।
आरोप पर पहली सुनवाई के प्रारंभ से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाएंगे। (धारा 251 बीएनएसएस)
आरोप तय होने की तारीख से 90 दिन पूरे होने के बाद घोषित अपराधियों के खिलाफ अनुपस्थिति में अभियोजन की कार्यवाही शुरू होनी चाहिए। (धारा 356 बीएनएसएस)
अभियोजन के लिए मंजूरी, दस्तावेजों की आपूर्ति, प्रतिबद्ध कार्यवाही, निर्वहन याचिकाओं को दाखिल करना, आरोप तय करना, निर्णय की घोषणा और दया याचिकाओं को दाखिल करना निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा करना अनिवार्य किया गया है। (धारा 251, 258 बीएनएसएस)
आपराधिक कार्यवाही में दो से अधिक स्थगन देने की अनुमति नहीं है। (धारा 346 वीएनएसएस)
समन जारी करने और उसकी तामील करने तथा न्यायालय के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग। (धारा 530 बीएनएसएस
आपराधिक न्याय प्रणाली में परिवर्तन
> मजिस्ट्रेटों को उन मामलों में समरी ट्रायल करने का अधिकार है जिनमें तीन वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है।
> समय पर न्यायः आरोप पर पहली सुनवाई शुरू होने से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए। किसी भी आपराधिक अदालत में मुकदमे के समापन के बाद, निर्णय की घोषणा में 45 दिनों से अधिक समय नहीं लगेगा। (धारा 251, 258 बीएनएसएस)
अभियोजन निदेशालयः राज्य में एक अभियोजन निदेशालय स्थापित होगा, जिसके अंतर्गत प्रत्येक जिले में जिला अभियोजन निदेशालय होंगे। अभियोजन निदेशालय न्यायालयों में मामलों की कार्यवाहियों के शीघ्र निपटारे और अपील फाइल करने पर अपनी राय देने और मानीटर करेंगे। (धारा 20 बीएनएसएस)
> पूछताछ और परीक्षण के लिए इलेक्ट्रॉनिक मोडः सभी पूछताछ और परीक्षण इलेक्ट्रॉनिक मोड में भी आयोजित किए जा सकता है। (धारा 530 बीएनएसएस)
> विचाराधीन कैदियों की रिहाई: पहली बार अपराध करने वाले अपराधियों को रिहा किया जा सकता है, यदि विचाराधीन कैदियों की हिरासत अवधि सजा की एक तिहाई तक पहुंच जाती है। (धारा 479 बीएनएसएस)
पुलिस की जवाबदेही और पारदर्शिता
> तलाशी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य है। (धारा 105 बीएनएसएस)
» कोई भी गिरफ्तारी, ऐसे अपराध के मामलों में जो तीन वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय है और ऐसा व्यक्ति जो गंभीर बीमारी से पीड़ित है या 60 वर्ष से अधिक की आयु का है, ऐसे अधिकारी, जो पुलिस उप-अधीक्षक से नीचे की पंक्ति का न हो, की पूर्व अनुमति के बिना नहीं की जाएगी। (धारा 35 (7) बीएनएसएस)
» गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती और जांच में पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के लिए 20 से अधिक धारा शामिल की गई हैं।
» असंज्ञेय मामलों में, ऐसे सभी मामलों की दैनिक डायरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को पाक्षिक रूप से भेजी जाएगी। (धारा 174 (1) (1) बीएनएसएस)