मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी नहीं हो पाया नेवारीकला स्कूल का उन्नयन, आक्रोशित बच्चों और पालकों ने कर दी तालाबंदी, पहुंचे डीईओ ,मिला यह आश्वासन
बालोद। बालोद ब्लाक के ग्राम नेवारी कला में 2009 से 11वीं 12वीं कक्षा को शासकीय करण की मांग को लेकर लगातार आवाज उठाई जा रही थी। जहां दसवीं तक स्कूल शासकीय करण है। इसके बाद 11वीं 12वीं को मान्यता नहीं मिली है। जिसके चलते आगे परीक्षा खासतौर बोर्ड के लिए लाटाबोड जाकर परीक्षा देनी पड़ती है। इस समस्या को देखते हुए बच्चों सहित पालकों द्वारा पिछले व 20 सितंबर 2022 को जगन्नाथपुर में भेंट मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री के आगमन पर मुद्दा उठाया गया था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घोषणा की थी कि उन्नयन कर दिया जाएगा। लेकिन अब तक नहीं हुआ है। ग्रामीणों में आक्रोश है और यह आक्रोश मंगलवार को फूट पड़ा। जहां बच्चों और पालकों ने मिलकर स्कूल में तालाबंदी कर दी। सुबह से दोपहर 2 बजे तक आंदोलन चला। समझाइश के लिए तहसीलदार, बीईओ आदि पहुंचे। बात नहीं बनी तो स्वयं डीईओ को भी वहां आना पड़ा। जिन्होंने आश्वस्त किया कि हमारी ओर से सभी प्रस्ताव जा चुके हैं। बजट में उम्मीद है। फिर मुख्यमंत्री की घोषणा पूरी हो जाएगी। आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हुए और आंदोलन समाप्त हुआ। यह भी कहा गया कि जनभागीदारी समिति से शिक्षकों की जरूरत नहीं है। सरकार अपने शिक्षकों को तनखा देती है वही 11वीं 12 वीं के बच्चों को पढ़ाएंगे और जो विषय के शिक्षक नहीं है उनकी व्यवस्था 1 महीने के भीतर हो जायेगी। वर्षों से यहां पर जन भागीदारी के जरिए फंड इकट्ठा करके स्कूल चला रहे हैं। अब उनके पास फंड नहीं है इस पर डीईओ ने जवाब दिया कि हमारे शिक्षक जो शासन से नियुक्त हैं वही ही आगे कक्षा को पढ़ाएंगे और शिक्षक की जरूरत नहीं है। जनभागीदारी से देने की भी जरूरत नहीं है। स्कूल के मुद्दों को शाला समिति के अध्यक्ष खोरबाहरा राम सहित ग्राम प्रमुखों में प्रकाशचंद केसरिया, सरपंच और उपसरपंच विष्णु राम, उत्तम महाराज आदि ने प्रमुखता से रखी। वहीं बच्चों ने डीईओ के सामने हमारी मांगे पूरी करो के स्वर से नारेबाजी भी की। डीईओ ने स्पष्ट कहा कि अब जनभागीदारी को स्कूल में कोई खर्च करने की जरूरत नहीं है। शासन से नियुक्त व्याख्याता ही अब सभी विषय पढ़ाएंगे। जिसके बाद मामला शांत हुआ और बच्चों के भविष्य को देखते हुए पालकों ने आंदोलन स्थगित किया।
यह है स्कूल संचालन का इतिहास
गांव वाले लंबे समय से यहां जन सहभागिता से स्कूल संचालित कर रहे हैं। स्कूल में कई विकास कार्य ग्रामीणों ने ही मिलकर करवाए हैं ।जो अपने आप में एक मिसाल भी था। लेकिन इसके चलते शासन प्रशासन यहां सुस्ती दिखा रहा था और शिक्षकों की नियुक्ति सहित उन्नयन की मांग पूरी ही नहीं हो रही थी। जिसके चलते ग्रामीण तंग आ गए थे और अब वे स्कूल के लिए पैसे नहीं होने की बात कह रहे थे। खुद के खर्चे पर यहां 11वीं 12वीं के अध्यापन के लिए ग्राम समिति द्वारा शिक्षक रखे जाते थे। वही जो शासन से नियुक्त व्याख्याता दसवीं तक की कक्षा को पढ़ाते थे। पहले यहां आठवीं तक स्कूल था। 2002 में नौवीं कक्षा, 2003 में दसवीं, 2004 में ग्यारहवीं, 2005 में 12वीं कक्षा शुरू की गई। उस वक्त भी शासकीय करण नहीं हुआ था। 2009 में 10वीं तक शासकीय हुआ। 11वीं और 12वीं की कक्षा जनभागीदारी से ही चली। बच्चों के भविष्य को देखते हुए ग्रामीणों ने अपने खर्च पर शिक्षक रखकर पढ़ाते थे ।ताकि बच्चों को दूसरे गांव के स्कूल जाना ना पड़े। लेकिन अब सब्र का बांध टूट गया और आंदोलन पर उतरे ताकि मुख्यमंत्री ने जो घोषणा की है वह जल्द से जल्द पूरा हो।