रामनगर रानीतराई में सजा है पहाड़ों वाली माता का दरबार, दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं अपनी मुरादे लेकर
दुर्गेश्वरी माता का देवी गीत पर झूमना होता है विशेष आकर्षण, नवरात्र में लगती है लोगों की भीड़
बालोद। बालोद से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर रामनगर गांव स्थित है। जो की रानीतराई, जुंगेरा पंचायत के अंतर्गत आता है। यहां पर पहाड़ों वाली माता का एक मंदिर है। जहां पर माता दुर्गेश्वरी रहती है। जिनका मूल नाम लक्ष्मी गोस्वामी है। विगत कई वर्षों से वह यहां माता सेवा कर रही है। नवरात्र में यहां विशेष आयोजन होता है। स्वयं माता दुर्गेश्वरी के अलावा दूर-दूर के माताएं यहां पर आती है और देवी जस गीत पर जमकर झूमती है। यहां मंदिर परिसर में अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी बने हुए हैं तो शूल सैया और झूले भी लगाए गए हैं। जिन पर पंचमी, अष्टमी और हवन के दिन माताएं सवार होकर माता जस गीत पर झूमकर नृत्य करती हैं। माता का भव्य और रौद्र रूप यहां देखने को मिलता है। हम किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं सिर्फ लोगों की आस्था को बताने का प्रयास कर रहे हैं। जो यहां अपनी विभिन्न समस्या लेकर आते हैं। जब हमने यहां की माता दुर्गेश्वरी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि लोग उनके पास लकवा से पीड़ित हो या निसंतान दंपत्ति हो, या किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी हो, आते हैं। माता की कृपा से कई लोगों के काम बने हैं। उनका कहना है कि माता ही सब कुछ करती है। हमारे हाथ में कुछ नहीं है। यह कोई अंधविश्वास नहीं है। ये सिर्फ माता के प्रति आस्था है। मेरा मानना है कि माता है तो संसार चल रहा है। दवा और दुआ दोनों काम आती है। दानदाताओं की मदद से लगातार इस मंदिर का विकास हो रहा है और मंदिर अब भव्यता की ओर बढ़ रहा है। पहले छोटा सा मंदिर हुआ करता था। लेकिन आज माता का दरबार सजता और बढ़ता जा रहा है। यहां पर लोग अपनी मनोकामना जोत जलाते हैं।
5 साल की उम्र से हो रहा है मुझ पर देवी सवार, नाना ने किया पूरा देखभाल
एक बातचीत में माता दुर्गेश्वरी उर्फ लक्ष्मी गोस्वामी ने बताया कि जब वह 5 साल की थी तब से उन पर देवी सवार होता है। यह सब देखकर मेरे नाना ने सलाह दिया कि इसे अपने माता-पिता के पास मत रखो। वे संभाल नहीं पाएंगे । तो फिर नाना मुझे अपने साथ ले गए और शुरू से ही उन्होंने पालन पोषण किया। मेरी शादी तक उन्होंने ही की। शादी के बाद ही मैं अपने माता-पिता का चेहरा देखी। उसके बाद शादी होकर मैं रामनगर आई और यहां भी मैंने माता सेवा की। माता की कृपा से ही लोग अपनी मुरादे लेकर आते हैं और मनोकामना पूरा होने पर यहां अपनी इच्छा अनुसार दान करते हैं।
1990 के दौर से माता यहां विराजी
श्रद्धालुओं ने बताया कि 1990 के दौर से यहां पर माता विराजी हैं । उस समय झोपड़ी नुमा मंदिर हुआ करता था। धीरे-धीरे दानदाताओं की सहयोग से यहां अब मंदिर का विकास हो रहा है। जिनकी भी मनोकामनाएं पूरी होती है वह अपनी इच्छा अनुसार यहां दान करते हैं। नवरात्र में पंचमी, अष्टमी और हवन के दिन का आयोजन यहां विशेष रहता है। माताएं दुर्गा, काली अलग-अलग रूप धारण करती हैं ।उन पर देवी सवार होती है और जमकर जस गीतों पर झूमती हैं। बगल में स्थित नहर में हुए छलांग लगाकर जोत विसर्जन करती हैं।