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श्री ब्रम्हवैवर्त महापुराण कथा : वेदों में जिनका विधान किया गया वह वैध संबंध व जिनका नहीं किया गया वह अवैध संबंध – शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद:

डोंडी लोहारा। ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ‘1008’ जी महाराज के मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने बताया पूज्यपाद शंकराचार्य जी रविवार प्रातः भगवान चंद्रमौलेश्वर का पूजार्चन पश्चात भक्तो को दिव्य दर्शन दिए एवं भक्तो को चरणोदक प्रसाद दिए ततपश्चात दूर दूर से आए भक्तो के धर्म सम्बंधित जिज्ञासाओं को दूर किए।

दोपहर दो बजे पाठेश्वरधाम से राम बालक दास जी द्वारा आयोजित ब्रह्मवैवर्त महापुराण कथा ज्ञानयज्ञ सप्ताह के आयोजन गौशाला कथा स्थल पहुँचे जहा परम्परा अनुसार भक्तो ने चरणपादुका का विशेष रूप से परमानन्द निषाद, ईश्वर निषाद, रामु लाल निषाद, मनहरण निषाद, पवन गुप्ता, दीपक सोनी, नीलकंठ जंघेल, बलराम साहू, गिरधर सोनवानी , शांति लाल हिरवानी, नरोत्तम साहू, विध्यवासनी साहू, दानी लाल साकेर, कौशल भाऊ, फुलीचन्द, पतिराम, कृष्णा भारती, बाबूलाल, नेपाल साहू, हरीराम, गिरधर गोपाल, बेद राम, कमला देवी, ईश्वरी वर्मा ने पूजन किया एवं पंडित निखिल तिवारी के द्वारा बिरुदावली का वाचन किया ततपश्चात शंकराचार्य ने तृतीय दिवस कथा वाचन प्रारम्भ किया।

शंकराचार्य जी ने कथा व्यास से कहा श्री ब्रम्हवैवर्त महापुराण कथा के तीसरे दिन कहा कि आपने ब्रह्मवैवर्त पुराण के माध्यम से अनेक कथा सुनो यह पुराण पुराने होकर के भी नए हैं, वह इसीलिए क्योंकि आगे का रास्ता हमको बता गए, जहां चल रहे हैं उससे आगे किस दिशा में जाए कि हमारा कल्याण हो जाएं। इसका दूरदर्शन इन्हीं कृतियों के माध्यम से होता हैं।इसीलिए यह पुराना हो करके भी नया हैं। आपने इसी पुराण के अंतर्गत सुना की संबंध क्या होते हैं ? संबंध कितने प्रकार के होते हैं ? जिन संबंधों का व्यवहार हम और आप अपने दैनिक जीवन में करते हैं। उनका निर्देश इन्हीं पुराणों से हम लोगों को प्राप्त हुआ हैं।

 

इस संसार में हमारे बहुत सारे संबंध बनते हैं कुछ को समाज ने मान्यता दी। कुछ को समाज निंदनीय समझता हैं जिनको समाज में स्वीकृति दी वेदों ने जिनके बारे में अपना अभिमत प्रदान किया हैं उन संबंधों का निर्वाह करना यह धर्म है और जिन संबंधों के बारे में वेदों ने निंदा की हैं व समाज भी यह समझता हैं। ऐसे संबंधों से व्यक्ति को बचना चाहिए। उन्हीं संबंधों को वैध संबंध वैध याने जिसका विधान किया गया हो। विधान कौन करेगा, वेद करेंगे, क्योंकि वेद ही हमारे धर्म नीव की पुस्तक हैं, तो वेदों के द्वारा जिन का विधान किया गया। वह संबंध वैध संबंध हैं और जिन का विधान वेदों के द्वारा नहीं किया गया। वह अवैध संबंध हैं।

अवैध संबंधों का परिणाम नर्क है व वैध संबंधों का निर्वाह हमको स्वर्ग में परिलक्षित करता इसलिए जो धार्मिक होगा वह कभी निर्मित संबंधों से अपने आप को दूर करके रखेगा, जिस तरह से प्रसंग चल रहे थे। ऋषियों ने सूत जी से पूछा कि महाराज आपने चर्चा यह की थी कि नारद जी को ब्रह्मा जी ने कहा सृष्टि रचना करो। फिर नारद जी ने सृष्टि रचना में करुणित नहीं हुए, जब ब्रह्मा ने उनके ऊपर दबाव डालना चालू किया। उन्होंने पलटकर के ब्रम्हा को ही श्राप दे दीया कि आप अपूज्य हो जाएंगे और ब्रह्मा जी ने भी नारद जी को श्राप दे दिया कि तुम बहुत बैरागी बन रहे हो 50 स्त्रियों के साथ संबंध रखने वाले बनोगे 50 पत्नियां तुम्हारी होंगी।

तो यह जो परस्पर पिता पुत्र ने एक दूसरे को श्राप दे दिया था। महाराज इस श्राप का क्या हुआ यह श्राप पिता पुत्र के बीच का था इसलिए कुछ फलित नहीं हुआ कि इसका भी फल हुआ। यह हमको बताइए पिता के श्राप से पुत्र पर क्या असर हुआ व पुत्र के श्राप से पिता पर क्या असर हुआ दूसरे ने कहा कि यही सुन लीजिए जिसको को सुनने में जिसकी रूचि हो उसको वही सुनाना अच्छा हैं। अगर आप को उस प्रसंग को सुनने में रुचि है तो यह प्रसंग आपको सुना देते हैं देखिए ब्रह्मा जी के अनेक पुत्र हुए। उनमें से कुछ सृष्टि की रचना में लीन हुए और कुछ ने इनकार किया कि नही केवल नारद जी ने मना नहीं किया हंस, यदि, आरुणि, पंचसीख चारों भाइयों ने भी मना किया।

क्योंकि ये दोराहा हम सबके सामने उपस्थित रहता है और यह हमारी ही मर्जी है कि हम किस रास्ते पर चल कर जाएं एक मार्ग प्रवृत्ति का और एक मार्ग निवृत्ति का है तो प्रवित्ति और निवृत्ति जो 2 मार्ग हैं इनमें से किसी एक को व्यक्ति को चुनना होता है कोई प्रवृत्ति मार्ग को चुनता है तो कोई निवृत्ति मार्ग को चुनता हैं। इसमें किसी का दबाव नहीं अपने संस्कार जिस प्रकार होते हैं तो यहां किसी को संसार की वस्तुओं में रुचि होती है और किसी को नहीं होती जिसको नहीं होती है उसको हम संसार में लगा भी देंगे तो क्या होगा वही कहानी है। संत की किसान के बेटे थे किसान पिता बार-बार इनको खेती में लगाता था लेकिन इनका मन उसमें लगता ही नहीं था एक बार की बात हैं। खेती लगभग पकने वाली थी अभी पकी नहीं थी लेकिन बालियों में दाने आ गए थे।

चिड़िया उसमें चोच मार रही थी किसान पिता ने अपने साधु बेटे को कहा बेटा हमको थोड़ा ज्यादा काम आ गया है। कम से कम आज खेत चला जा। करना थोड़ी कुछ है तू वही राम राम कहते रहना व जब कोई पक्षी आए तब पत्थर उठा कर उसको फेंक के मार देना या फिर ताली बजा देना व या फिर जाकर के पौधे को हिला देना। वह पक्षी चला जाएगा। अन्न की रक्षा हो जाएगी।

कथा श्रवण करने दूर दूर से हज़ारो की संख्या में भक्त पहुँच रहे है वही आयोजक संत रामबालक दास जी महाराज ने बताया दूर दूर से पहुँच रहे भक्तो के लिए ठहरे की समुचित व्यवस्था व सीता रशोई के माध्य से भव्य भण्डारा का आयोजन निरन्तर जारी है।

दुर्ग सांसद सहित क्षेत्र के लोगो ने कथा स्थल पहुँच दर्शन कर किया पदुकापुजन

ब्रह्मवैवर्त पुराण कथा ज्ञानयज्ञ सप्ताह के चौथे दिन दुर्ग सांसद विजय बघेल सहित सैकड़ों कार्यकता कथा स्थल पहुँचे जहा जगद्गुरु शंकराचार्य का दर्शन प्राप्त कर चरणपादुका का पूजन कर कथा श्रवण किए। इस अवसर पर लीलेश कुमार देशमुख, खुराना, परमजीत, रोशन ताम्रकार, रवि सिंह, आशीष शर्मा, नेतराम वर्मा, गोपाल कृष्ण वर्मा, लोकमणि चन्द्राकर, दामन चन्द्रवंशी, दिनेश गौतम, खूबचन्द वर्मा, भोजराज सिन्हा, राम कुमार धनकर, राजेश चन्द्राकर, राजा ठाकुर, राजा पाठक, प्रकाश यादव,पोषण वर्मा, बी एन पांडेय, अरविंद सिंह, विनय चन्द्राकर, राजेश वर्मा, उपेंद्र वर्मा, उमेश मिश्रा, प्रदीप पाल, महेंद्र सिंह, सुंदर सिंह चौहान, संदीप पांडेय, संजय प्रताप सिंह, पूर्ण साहू, प्रकाश साहू, निशु पांडेय सहित हजारो श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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